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अक्षय तृतीया - आखा तीज

DeepakDeepak

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया, हिन्दु कैलेण्डर के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह पर्व शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि पर, अर्थात हिन्दु कैलेण्डर के वैशाख चन्द्र माह के तीसरे दिन मनाया जाता है। हिन्दु धर्म ग्रन्थों व पुराणों के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन सत्ययुग समाप्त हुआ था तथा त्रेतायुग प्रारम्भ हुआ था। अतः अक्षय तृतीया युगादी तिथि है तथा अधिकांश हिन्दु परिवारों में इसका विशेष महत्व माना जाता है।

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अक्षय तृतीया के दौरान आभूषण के रूप में स्वर्ण क्रय करना

अक्षय तृतीया के दिन सम्पूर्ण सृष्टि के संरक्षक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है, अतः इस पर्व को भगवान विष्णु के श्री लक्ष्मीनारायण स्वरूप की पूजा हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। लक्ष्मीनारायण भगवान विष्णु के अवतार हैं, जिन्हें उनकी अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी के साथ पूजा जाता है। अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर भगवान विष्णु के भक्त एक दिवसीय उपवास का पालन करते है। व्रतराज के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन समस्त धार्मिक अनुष्ठानों एवं विधि-विधानों द्वारा पुष्प, धुप एवं विभिन्न प्रकार के लेपों से भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करनी चाहिये।

अक्षय तृतीया को वैदिक ज्योतिष में भी विशेष महत्व दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करने हेतु किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। विवाह, गृह प्रवेश, नवीन वस्त्राभूषण क्रय करने, सम्पत्ति क्रय, वाहन क्रय आदि करने जैसे अनेकों माङ्गलिक कार्य अक्षय तृतीया के अवसर पर सम्पन्न किये जाते हैं।

अक्षय तृतीया उद्भव एवं महत्व

हिन्दु समय गणना पद्धिति के अनुसार, समय को चार युगों में बाँटा गया है। यह चारों युग के एक चक्र के रूप में स्थित हैं, जिन्हें सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग के नाम से जाना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन सत्ययुग, अर्थात मनुष्य जाति के स्वर्णकाल का अन्त तथा त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था। अतः हिन्दु धर्म में अक्षय तृतीया अत्यधिक आन्तरिक स्तर तक निहित है तथा पृथ्वी पर मनुष्य जीवन की उत्पत्ति को इन्गित करती है। अतः अक्षय तृतीया हिन्दु धर्म की चार युगादी तिथियों में से एक है।

अक्षय का शाब्दिक अर्थ होता है, जिसका कभी क्षय न हो अर्थात अनन्त। अतः इस दिन किया हुआ जप, यज्ञ, पितृ-तर्पण, दान-पुण्य एवं वेद-स्वाध्याय तथा पूजा आदि कर्मों का कभी क्षय नहीं होता।

इस दिन का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने हेतु, अधिकांश लोग इस दिन धार्मिक स्थानों पर पवित्र जल में स्नान करते हैं। अक्षय तृतीया के अतिरिक्त अनेक भक्त सम्पूर्ण वैशाख माह तक पवित्र करने स्नान का संकल्प ग्रहण करते हैं। अक्षय तृतीया के शुभः दिवस पर हिन्दु परिवार अपने पूर्वजों की प्रसन्नता हेतु जल एवं तिल के द्वारा तर्पण अनुष्ठान करते हैं।

मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के महत्वपूर्ण अवसर पर हवन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है तथा इस दिन लोग विशेषतः यव (जौ के दाने) एवं अक्षत (बिना टूटे चावल) के द्वारा हवन करते हैं।

अक्षय तृतीया आराध्य

इस पर्व के मुख्य आराध्य भगवान लक्ष्मीनारायण हैं, जो भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं तथा वह अपनी अर्धांगिनी देवी लक्ष्मी के साथ विराजते हैं।

अक्षय तृतीया भगवान परशुराम का जन्मदिवस भी है, जिसे परशुराम जयन्ती के रूप में जाना जाता है। भगवान परशुराम, भगवान राम के छठवें अवतार थे। इसीलिये भगवान विष्णु के भक्त एवं ब्राह्मण समुदाय अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम की पूजा करते हैं।

अक्षय तृतीया तिथि व समय

अमान्त एवं पूर्णिमान्त हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार -
वैशाख (द्वितीय माह) माह शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (तीसरा दिवस)

अक्षय तृतीया क्रिया-कलाप

  • भगवान विष्णु को समर्पित एक दिवसीय उपवास का पालन करना
  • भगवान विष्णु के लक्ष्मीनारायण स्वरूप की पूजा करना
  • आभूषण तथा सिक्कों के रूप में स्वर्ण क्रय करना
  • विवाह आयोजन एवं गृह प्रवेश करना
  • नवीन वाहन क्रय करना
  • गङ्गा एवं अन्य पवित्र तीर्थों पर स्नान करना
  • पूर्वजों की प्रसन्नता हेतु तर्पण करना
  • ब्राह्मणों एवं असहायों को दान देना
  • हवन करना

अक्षय तृतीया क्षेत्रीय विविधतायें

अक्षय तृतीया पर्व सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। हिन्दु धर्म के अतिरिक्त जैन धर्म में भी यह पर्व मनाया जाता है।

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