गुड़ी पड़वा पर्व मराठी कैलेण्डर में नव वर्ष के आरम्भ को दर्शाता है। गुड़ी पड़वा को मराठी नव वर्ष के रूप में भी जाना जाता है तथा यह चैत्र माह के प्रथम दिवस पर मनाया जाता है। चन्द्र-सौर कैलेण्डरों पर आधारित अधिकांश हिन्दु कैलेण्डर गुड़ी पड़वा को अत्यधिक महत्वपूर्ण दिवस मानते हैं। गुड़ी पड़वा के रूप में नव वर्ष मनाने की परम्परा महाराष्ट्र में अधिक प्रचलित है। कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश में यही पर्व क्रमशः उगादी एवं युगादी के रूप में मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा पर्व सम्वत्सर पाडवो के नाम से भी लोकप्रिय है, जिसका शाब्दिक अर्थ है नव सम्वत का प्रथम दिवस। सम्वत्सर साठ (60) वर्षों का एक लम्बा समयचक्र है, जो शुक्र ग्रह की स्थिति से सम्बन्धित है। सम्वत्सर चक्र के अन्तर्गत सभी वर्षों का एक निश्चित नाम होता है तथा सम्वत के प्रकृति के आधार पर आगामी वर्ष हेतु भविष्यवाणी की जाती है।
गुड़ी पड़वा उत्पत्ति एवं महत्व
गुड़ी पड़वा चन्द्र-सौर आधारित हिन्दु कैलेण्डर का प्रथम दिवस होता है। अधिकांश हिन्दु कैलेण्डर एक प्राचीन ग्रन्थ पर आधारित हैं, जिसे सूर्य सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार, स्वयं सूर्यदेव ने ही मनुष्यों को सूर्य सिद्धान्त का ज्ञान प्रदान किया था। इसीलिये गुड़ी पड़वा की उत्पत्ति की तिथि निर्धारित करना असम्भव सिद्ध हो सकता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार गुड़ी पड़वा पर्व का दिन अति महत्वपूर्ण होता है। गुड़ी पड़वा पर्व साढ़े तीन मुहूर्त के अन्तर्गत आता है। वैदिक ज्योतिष में गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, विजयदशमी तथा बलि प्रतिपदा के आधे भाग के संयोजन से साढ़े तीन मुहूर्त का निर्माण होता है। इन दिवसों पर किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। मान्यता है कि, इन दिवसों पर किये गये सभी कार्य सकारात्मक एवं शुभ परिणाम देते हैं
गुड़ी पड़वा का दिन भी खरीदारी के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है तथा लोग इस दिन ढेर सारी खरीदारी करते हैं।
गुड़ी पड़वा आराध्य
गुड़ी पड़वा का कोई विशेष इष्ट आराध्य नहीं है। यद्यपि गुड़ी को स्वयं देव रूप में स्वीकार किया जाता है तथा गुड़ी पड़वा के दिन उनकी पूजा की जाती है।
गुड़ी पड़वा तिथि व समय
अमान्त एवं पूर्णिमान्त हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार - चैत्र माह (प्रथम हिन्दु माह) की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि (प्रथम दिवस)
गुड़ी पड़वा क्रिया कलाप
पारम्परिक वस्त्र धारण करना
अधिकांशतः परिवारजन इस दिन प्रातः शीघ्र जाग जाते हैं। प्रातः स्नान के पश्चात् लोग गुड़ी पड़वा पर्व हेतु पारम्परिक वेशभूषा धारण करते हैं।
गुड़ी स्थापना
गुड़ी पड़वा पर लोग मुख्य द्वार के सामने गुड़ी स्थापना करते हैं। महाराष्ट्र में चमकीले रेशमी वस्त्र के साथ छड़ी के ऊपर कलश को बाँधना विजय का प्रतीक माना जाता है। कलश को एक छड़ी के ऊपर स्थापित करने एवं उसे पुष्पों व आम के पत्तों से सुसज्जित करने की पूर्ण प्रक्रिया को गुड़ी के नाम से जाना जाता है। इसीलिये लोग बुराई पर अच्छाई की विजय के सन्देश के साथ नव वर्ष का आरम्भ करते हैं। गुड़ी प्रत्येक घर में एक धर्म ध्वज के समान प्रतीत होती है।
रँगोली बनाना
सामन्यतः स्त्रियाँ मुख्य प्रवेश द्वार के साथ-साथ गुड़ी के चरणों में शुभता के प्रतीक स्वरूप सुन्दर रँगोली बनाती हैं।
गुड़ी पूजा
अधिकांश परिवारीजन माला, पुष्प, अक्षत, कुमकुम एवं हल्दी से गुड़ी पूजन करते हैं। लोग नव सम्वत्सर में प्रगति, धन एवं समृद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि, गुड़ी की पूजा करने से अनुकूल स्वास्थ्य, धन एवं समृद्धि प्राप्त होती है।
पारम्परिक व्यञ्जन तैयार करना
गुड़ी पड़वा के अवसर पर श्रीखण्ड, पूरन पोली, चावल चकली एवं भाकरवड़ी जैसी पारम्परिक मराठी व्यञ्जन तैयार किये जाते हैं तथा मित्रों, सम्बन्धियों एवं परिवार के सदस्यों के साथ उनका आनन्द लिये जाता है।
परम्परिक व्यञ्जनों के अतिरिक्त सम्वत्सर के प्रथम दिवस पर मिश्री एवं नीम के कोमल पत्ते खाने की प्रथा प्रचलित है।
गुड़ी पड़वा क्षेत्रीय विविधितायें
उत्तर भारत में गुड़ी पड़वा
अधिकांश उत्तर भारतीय राज्यों में इस दिन नौ दिवसीय चैत्र नवरात्रि उत्सव का आरम्भ होता है, जो राम नवमी के दिन सम्पन्न होता है। गुड़ी पड़वा पर्व मुख्यतः महाराष्ट्र में मनाया जाता है वहाँ अमान्त कैलेण्डर का अनुसरण किया जाता है। उत्तर भारतीय राज्यों में, जो कि पूर्णिमान्त कैलेण्डर का पालन करते हैं, वर्ष का प्रथम दिवस चैत्र प्रतिपदा अथवा गुड़ी पड़वा से पन्द्रह (15) दिवस पश्चात् आरम्भ होता है। इसीलिये पूर्णिमान्त कैलेण्डर में होलिका दहन के अगले दिन वर्ष का प्रथम दिवस आरम्भ होता है। यद्यपि अधिकांश पञ्चाङ्गों में विक्रम सम्वत के साथ-साथ शक सम्वत भी गुड़ी पड़वा पर्व से ही आरम्भ होता है।
आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में गुड़ी पड़वा
आन्ध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में गुड़ी पड़वा पर्व को उगादी के रूप में मनाया जाता है। उगादी के दिन किये जाने वाले अनुष्ठान गुड़ी पड़वा के दिन किये जाने वाले अनुष्ठानों से भिन्न होते हैं। यद्यपि इस पर्व को मनाने के पीछे छिपा भाव समान ही है, अतः यह दिन तेलुगू कैलेण्डर में नव वर्ष को दर्शाता है।
कर्नाटक में गुड़ी पड़वा
कर्नाटक में गुड़ी पड़वा पर्व युगादी के रूप में मनाया जाता है। कर्नाटक में यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण दिवस है तथा इस दिन कन्नड़ कैलेण्डर में नव वर्ष का आरम्भ होता है।