ऐसा माना जाता है कि, होली पर होलिका पूजन करने से सभी प्रकार के भय पर विजय प्राप्त की जा सकती है। होलिका पूजा से शक्ति, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। मान्यताओं के अनुसार, होलिका का निर्माण सभी प्रकार के भय का निवारण करने हेतु किया गया था। इसीलिये होलिका के एक राक्षसी होते हुये भी, होलिका दहन से पूर्व प्रह्लाद के साथ उनका पूजन किया जाता है।
धार्मिक ग्रन्थों में होलिका दहन से पूर्व होलिका पूजन करने का सुझाव दिया गया है। होलिका दहन हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार विचार-विमर्श करके उचित मुहूर्त में ही करना चाहिये। उचित समय पर होलिका दहन करना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि अशुभ मुहूर्त में होलिका दहन करने से दुर्भाग्य एवं कष्ट भोगना पड़ सकता है। अपने शहर के लिये होलिका दहन का उचित समय ज्ञात करने हेतु कृपया होलिका दहन मुहूर्त पर जायें।
पूजन हेतु निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिये : एक कटोरा पानी, गाय के गोबर से बने मोती, रोली, चावल जो टूटे हुये न हों (संस्कृत में अक्षत भी कहा जाता है), धूप एवं गन्ध, पुष्प, कच्चे सूती धागे, हल्दी के टुकड़े, साबुत मूँग की दाल, बताशा, गुलाल तथा नारियल। इसके अतिरिक्त, गेहूँ एवं चना की नवीन फसलों में से पूर्ण विकसित अनाज को भी पूजा सामग्री में सम्मिलित किया जा सकता है।
जिस स्थान पर होलिका रखी जाती है, उसे गाय के गोबर से लीपकर और गङ्गाजल से धोकर पवित्र किया जाता है। केन्द्र में एक लकड़ी का खम्बा रखा जाता है तथा उसके चारों ओर गाय के गोबर से बने खिलौनों, मोतियों तथा मालाओं से ढेर बनाया जाता है, जिन्हें लोकप्रिय रूप से गुलरी, भरभोलिये अथवा बड़कुला के नाम से जाना जाता है। सामान्यतः गाय के गोबर से बनी होलिका एवं प्रह्लाद की मूर्तियाँ उस ढेर के शीर्ष पर रखी जाती हैं। होलिका के ढेर को गाय के गोबर से निर्मित ढालों, तलवारों, सितारों, सूर्य, चन्द्र, आदि खिलौनों से सुसज्जित किया जाता है।
होलिका दहन के समय भक्त प्रह्लाद की मूर्ति को बाहर निकाला जाता है। इसके अतिरिक्त होलिका दहन से पूर्व गाय के गोबर की चार गुलरियाँ भी सुरक्षित रख ली जाती हैं। एक पितरों के नाम पर, दूसरी हनुमान जी, के नाम पर, तीसरी देवी शीतला के नाम पर तथा चौथी गुलरी को परिवार के नाम पर सुरक्षित जाता है।
हमने संस्कृत में मन्त्रों को सूचीबद्ध किया है तथा उनके साथ ही हमने उन मन्त्रों का अर्थ भी समझाया है। यदि कोई उन मन्त्रों का जाप करने में सक्षम नहीं है तो वह अपनी भाषा में उसी भाव से उनका जाप कर सकता है।
1. सभी पूजा सामग्री को एक थाल में रख लें। पूजा की थाली के समीप छोटे पात्र में जल भी रखें। पूजा स्थल पर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। तत्पश्चात् तीन बार निम्लिखित मन्त्र का जाप करते हुये पूजा की थाली एवं अपने ऊपर जल छिड़कें।
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु। x 3
उपरोक्त मन्त्र का उच्चारण किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पूर्व भगवान विष्णु का ध्यान करने एवं उनका आशीर्वाद ग्रहण करने हेतु किया जाता है। इसका प्रयोग पूजा स्थल का शुद्धिकरण करने हेतु भी किया जाता है।
2.अब दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प एवं दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे लेकर संकल्प ग्रहण करें।
ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे ________ (संवत्सर का नाम लें e.g. विश्वावसु) नाम संवत्सरे संवत् ________ (e.g. 2069) फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि ________ (e.g. मंगलवासरे) ________ गौत्र (अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना ________ (अपने नाम का उच्चारण करें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।
उपरोक्त मन्त्र का जप करके, व्यक्ति वर्तमान में प्रचलित हिन्दु तिथि, पूजा का स्थान, अपने परिवार का उपनाम, अपना नाम, पूजा का उद्देश्य तथा पूजा किसके निमित्त की जाती है, का पाठ कर रहा है, ताकि पूजा का सम्पूर्ण लाभ उपासक को प्राप्त हो जाये।
3. अब दाहिने हाथ में पुष्प एवं अक्षत लेकर भगवान गणेश का ध्यान एवं स्मरण करें। भगवान गणेश का ध्यान करते समय जपने का मन्त्र निम्नलिखित है -
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपमजम्॥
ऊँ गं गणपतये नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
उपरोक्त मन्त्र का जाप उच्चारण करते हुये एक पुष्प पर रोली एवं अक्षत लगाकर सुगन्ध सहित भगवान गणेश को अर्पित करें।
4. भगवान गणेश की पूजा करने के पश्चात देवी अम्बिका का स्मरण करें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें। नीचे दिये गये मन्त्र का जप करते हुये पुष्प पर रोली तथा अक्षत लगाकर सुगन्ध सहित देवी अम्बिका को अर्पित करें।
ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।
5. तदोपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये भगवान नरसिंह का ध्यान करें। नीचे दिये गये मन्त्र का उच्चारण करते हुये पुष्प पर रोली तथा अक्षत लगाकर सुगन्ध सहित भगवान नरसिंह को अर्पित करें।
ऊँ नृसिंहाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
6. नरसिंह भगवान का पूजन करने के पश्चात भक्त प्रह्लाद का स्मरण करें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें। नीचे दिये गये मन्त्र का उच्चारण करते हुये पुष्प पर रोली एवं अक्षत लगाकर सुगन्ध सहित भक्त प्रह्लाद को अर्पित करें।
ऊँ प्रह्लादाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
7. अब होलिका के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जायें तथा निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अपनी मनोकामनाओं की पूर्ती हेतु प्रार्थना करें।
असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:॥
इसका अर्थ यह है कि, कुछ मूर्ख एवं बचकाने लोगों ने रक्तपान करने वाले राक्षसों के निरन्तर भय के कारण होलिका का निर्माण किया था। अतः, मैं आपकी पूजा करता हूँ तथा अपने लिये शक्ति, धन एवं समृद्धि करता हूँ।
8. होलिका को अक्षत, सुगन्ध, पुष्प, साबुत मूँग की दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल तथा भरभोलिये (गाय के सूखे गोबर से बनी माला जिसे गुलरी तथा बड़कुला भी कहते हैं) अर्पित करें। होलिका की परिक्रमा करते हुये उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पाँच अथवा सात माला बाँधी जाती हैं। तदोपरान्त कलश के जल को होलिका के समक्ष अर्पित कर दें।
9. तदोपरान्त होलिका दहन किया जाता है। सामान्यतः, होलिका दहन हेतु सार्वजनिक होलिका की अग्नि घर लायी जाती है। इसके पश्चात सभी पुरुष रोली का शुभ टीका लगाते हैं तथा बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं तथा नवीन फसल को होली की अग्नि में भूनते हैं। भुने हुये अनाज को होलिका प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
अगली सुबह, गीली होली के दिन, होली के अलाव की राख एकत्र की जाती है तथा शरीर पर लगायी जाती है। राख को पवित्र माना जाता है तथा माना जाता है कि, इसको के प्रयोग से शरीर एवं आत्मा शुद्ध हो जाती है। ज्योतिषियों द्वारा अलाव की भस्म से अनेक उपाय वर्णित किये गये हैं।