यहाँ हम विस्तृत वट सावित्री पूजा विधि का वर्णन कर रहे हैं, जिसका पालन वट सावित्री अमावस्या तथा वट सावित्री पूर्णिमा के अवसर पर किया जाता है। निम्नलिखित पूजा विधि में वह सभी सोलह चरण सम्मिलित हैं, जो षोडशोपचार वट सावित्री पूजा विधि का अङ्ग हैं।
भगवान ब्रह्मा एवं उनकी अर्धांगिनी सावित्री का ध्यान करते हुये पूजा आरम्भ करनी चाहिये। भगवान ब्रह्मा एवं सावित्री की पहले से स्थापित प्रतिमाओं के समक्ष ध्यान करना चाहिये। ध्यान करते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये।
ध्यानोपरान्त, आवाहन मुद्रा में निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, भगवान ब्रह्मा के साथ लोकमाता सावित्री, सत्यवान के साथ सावित्री तथा यमदेव का आवाहन करना चाहिये। आवाहन मुद्रा दोनों हथेलियों को मिलाकर तथा दोनों अँगूठों को अन्दर की ओर मोड़कर बनायी जाती है।
आवाहन करने के पश्चात्, देवों को पुष्प निर्मित आसान अर्पण करने हेतु अञ्जलि में (दोनों हथेलियों को मिलाकर) पाँच पुष्प लें तथा उन्हें भगवान ब्रह्मा एवं लोकमाता सावित्री, सत्यवान एवं उनकी पत्नी सावित्री तथा यम देवता की मूर्तियों के समक्ष निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये अर्पित कर दें।
पुष्प निर्मित आसन अर्पित करने के उपरान्त, भगवान ब्रह्मा की अर्धांगिनी सावित्री, सत्यवान की पत्नी सावित्री तथा धर्मराज यम को निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये चरण-प्रक्षालन हेतु जल अर्पित करें।
पाद्य प्रक्षालन के उपरान्त, सत्यवान की पत्नी सावित्री को निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, अभिषेक हेतु जल अर्पित करें।
अर्घ्य अर्पित करें के पश्चात्, भगवान ब्रह्मा एवं सावित्री को निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, आचमन (ग्रहण करने हेतु जल) अर्पित करें।
आचमनीय के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, देवी सावित्री को पञ्चामृत (दुग्ध, दही, मधु, घृत तथा शक्कर) से स्नान करवायें।
पञ्चामृत स्नान के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, भगवान ब्रह्मा की अर्द्धांगिनी सावित्री, सत्यवान एवं सावित्री तथा धर्मराज यम को स्नान हेतु जल अर्पित करें।
स्नान के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, सत्यवान की पत्नी सावित्री को सूती वस्त्र अर्पित करें।
वस्त्र अर्पित करें के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, भगवान ब्रह्मा की अर्धांगिनी लोकमाता सावित्री, धर्मराज यम तथा सत्यवान की पत्नी सावित्री को उपवीत अर्पित करें।
उपवीत अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, भगवान ब्रह्मा को आभूषणों से सुसज्जित करें।
आभूषण अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, देवी सावित्री को चन्दन अर्पित करें।
चन्दन अर्पित करें के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, देवी सावित्री को अक्षत (बिना टूटे चवाल) अर्पित करें।
अक्षत अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, देवी सावित्री को हल्दी, कुमकुम, सिन्दूर आदि को सौभाग्यद्रव्य के रूप में अर्पित करें।
सौभाग्यद्रव्य अर्पित करने के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, देवी सावित्री को पुष्प अर्पित करें।
तत् पश्चात् उन देवताओं की पूजा करें, जो स्वयं सावित्री की देह के अङ्ग हैं। पूजन हेतु बायें हाथ में चन्दन, अक्षत एवं पुष्प लें तथा निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुये दाहिने हाथ से उन्हें सावित्री की मूर्ति अथवा चित्र के समक्ष अर्पित कर दें।
सावित्री की अङ्ग पूजा के उपरान्त, भगवान ब्रह्मा एवं सत्यवान की पूजा करें। पूजन हेतु बायें हाथ में गन्ध, अक्षत एवं पुष्प लें तथा निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुये दाहिने हाथ से उन्हें भगवान ब्रह्मा एवं सत्यवान की मूर्ति अथवा चित्र के समीप अर्पित कर दें।
ब्रह्मसत्य पूजा के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को धूप अर्पित करें।
धुप अर्पित करने के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को दीप अर्पित करें।
दीप अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को नैवेद्य अर्पित करें।
नैवेद्य अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को फल अर्पित करें।
फल अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को ताम्बूल (पान-सुपारी) अर्पित करें।
ताम्बूल अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को दक्षिणा (भेंट) अर्पित करें।
दक्षिणा अर्पित करने के पश्चात्, निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री को पुष्पाञ्जलि अर्पित करें।
अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुये, लोकमाता सावित्री से प्रार्थना करें।
॥ इति वटसावित्री पूजा विधिः सम्पूर्णः ॥