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वसन्त पञ्चमी एवं श्री पञ्चमी पर सरस्वती पूजा

DeepakDeepak

वसन्त पञ्चमी

वसन्त पञ्चमी सरस्वती पूजा

वसन्त पञ्चमी का दिन देवी सरस्वती को समर्पित है, जो ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धिमत्ता एवं अध्ययन की देवी हैं। मुख्यतः पश्चिम बंगाल में वसन्त पञ्चमी को श्री पञ्चमी एवं सरस्वती पूजा के रूप में जाना जाता है। यह उल्लेखनीय है कि शरद नवरात्रि के समय भी सरस्वती पूजा की जाती है, जो कि दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय है।

Hindu Family Saraswati Puja
वसन्त पञ्चमी पर सरस्वती पूजा में सम्मिलित होते हुये परिवार जन

वसन्त पञ्चमी का महत्व

वसन्त पञ्चमी को देवी सरस्वती की जन्म वर्षगाँठ भी माना जाता है। इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिन को सरस्वती जयन्ती के रूप में भी जाना जाता है।

जैसे दीवाली का दिन देवी लक्ष्मी की पूजा हेतु अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जो कि सम्पत्ति एवं समृद्धि की देवी हैं तथा नवरात्री को देवी दुर्गा के पूजन हेतु महत्वपूर्ण माना जाता है, जो कि शक्ति एवं वीरता की देवी हैं, इसी प्रकार वसन्त पञ्चमी पर्व देवी सरस्वती की आराधना हेतु महत्वपूर्ण होता है, जो कि ज्ञान एवं बुद्धिमत्ता की देवी हैं।

इस दिन देवी सरस्वती की पूजा पूर्वाह्न काल में की जाती है। हिन्दु दिवस विभाजन के अनुसार यह दोपहर से पूर्व का समय होता है। श्वेत रँग को देवी सरस्वती का प्रिय रँग माना जाता है, अतः इस दिन भक्तगण श्वेत वस्त्र एवं पुष्पों से देवी का शृङ्गार करते हैं। सामान्यतः दूध एवं श्वेत तिल से निर्मित मिष्ठान देवी सरस्वती को अर्पित करके मित्रों एवं परिवार के सदस्यों के मध्य प्रसाद के रूप में वितरित किये जाते हैं। उत्तर भारत में, वसन्त पञ्चमी के शुभ अवसर पर देवी सरस्वती को पीले पुष्प अर्पित किये जाते हैं, क्योंकि वर्ष के इस समय में सरसों एवं गेंदे के पुष्प प्रचुर मात्रा में होते हैं।

वसन्त पञ्चमी का दिन विद्या आरम्भ हेतु महत्पूर्ण होता है। विद्या आरम्भ एक परम्परिक अनुष्ठान है जिसके द्वारा बच्चों की शिक्षा एवं अध्ययन का शुभारम्भ किया जाता है। अधिकांश विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में वसन्त पञ्चमी के दिन सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है।

वसन्त हिन्दु कैलेण्डर में छह भारतीय ऋतुओं में से एक ऋतु है। वसन्त पञ्चमी पर्व का नाम सम्भवतः एक अपभ्रंश हो सकता है क्योंकि यह दिन भारतीय वसन्त ऋतु से सम्बन्धित नहीं है। वसन्त पञ्चमी अनिवार्य रूप से वसन्त ऋतु के समय नहीं आती है। यद्यपि वर्तमान समय में कुछ वर्षों में यह पर्व वसन्त के समय आता है। इसीलिये वसन्त पञ्चमी के दिन को सन्दर्भित करने के लिये श्री पञ्चमी व सरस्वती पूजा अधिक उपयुक्त नाम हैं क्योंकि कोई भी हिन्दु पर्व ऋतुओं से सम्बन्धित नहीं है।

वसन्त पञ्चमी के देवी-देवता

देवी सरस्वती

वसन्त पञ्चमी दिनाँक और समय

हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार
माघ चन्द्र माह की शुक्ल पक्ष पञ्चमी

वसन्त पञ्चमी पर अनुष्ठान

वसन्त पञ्चमी के अवसर पर किये जाने वाले प्रमुख अनुष्ठान एवं गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं -

  • घर पर सरस्वती पूजा करना
  • पतंग उड़ाना
  • श्वेत एवं पीले वस्त्र धारण करना
  • देवी सरस्वती को सरसों व गेंदे के फूल अर्पित करना
  • बच्चों का विद्यारम्भ
  • विद्यालयों व महाविद्यालयों में सरस्वती पूजा का आयोजन करना
  • नये कार्य आरम्भ करना विशेषतः शैक्षणिक संस्थानों एवं विधालयों का उद्घाटन आदि करना
  • अपने दिवङ्गत परिवारजनों के निमित्त पितृ तर्पण करना

वसन्त पञ्चमी की क्षेत्रीय विविधितायें

बृज में वसन्त पञ्चमी - मथुरा व वृन्दावन के मन्दिरों में वसन्त पञ्चमी समारोह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक हर्सोल्लास से मनाया जाता है। वसन्त पञ्चमी के दिन बृज के देवालयों में होली उत्सव का आरम्भ होता है। वसन्त पञ्चमी के दिन अधिकांश मन्दिरों को पीले पुष्पों से सुसज्जित किया जाता है। वसन्त आगमन के प्रतीक के रूप में देवी-देवताओं की मूर्तियों को पीले परिधानों से सुशोभित किया जाता है।

इस दिन वृन्दावन में प्रसिद्ध शाह बिहारी मन्दिर में भक्तों के लिये वसन्ती कमरा खोला जाता है। वृन्दावन के श्री बाँके बिहारी मन्दिर में, पुजारी भक्तों पर अबीर व गुलाल डालकर होली उत्सव आरम्भ करते हैं। जो लोग होलिका दहन पण्डाल बनाते हैं, वे इस दिन गड्ढा खोदते हैं तथा उसमें होली डण्डा (एक लकड़ी की छड़ी) स्थापित कर देते हैं। इस लकड़ी पर आगामी 41 दिनों तक अनुपयोगी लकड़ी व सूखे गोबर के कण्डों से ढेर बनाया जाता है जिसे होलिका दहन अनुष्ठान में जलाया जाता है।

पश्चिम बंगाल में वसन्त पञ्चमी - पश्चिम बंगाल में वसन्त पञ्चमी को सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा के सामान ही सरस्वती पूजा पर्व भी अत्यन्त श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाया जाता है। सरस्वती पूजा मुख्यतः विद्यार्थियों द्वारा की जाती है। पारम्परिक रूप से इस दिन बालिकायें पीली बसन्ती साड़ी तथा बालक धोती-कुर्ता धारण करते हैं। विद्यार्थियों के साथ-साथ कलाकार भी अध्ययन की पुस्तकें, संगीत वाद्ययन्त्र, पेन्ट-ब्रश, कैनवास, स्याही तथा बाँस की कलम को मूर्ति के सामने रखते हैं तथा देवी सरस्वती के साथ उनकी भी पूजा करते हैं।

अधिकांश घरों में प्रातःकाल देवी सरस्वती को अञ्जलि अर्पित की जाती है। बिल्व पत्र, गेंदा, पलाश व गुलदाउदी पुष्प तथा चन्दन के लेप से देवी का पूजन किया जाता है।

दुर्गा पूजा के सामान ही सरस्वती पूजा पर्व भी सामाजिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग एक साथ अपने क्षेत्रों में पण्डाल बनाते हैं तथा देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित करते हैं। इस दिन परम्परागत रूप से ज्ञान एवं बुद्धिमत्ता की देवी की कृपा प्राप्ति हेतु ग्रामोफोन पर संगीत बजाया जाता है।

नैवेद्य में देवी सरस्वती को बेर, सेब, खजूर तथा केले अर्पित किये जाते हैं तथा तत्पश्चात् भक्तों में वितरित किये जाते हैं। यद्यपि पर्व से काफी पहले ही बेर फल बाजार में उपलब्ध हो जाते हैं, किन्तु अनेक लोग माघ पञ्चमी के दिन देवी सरस्वती को फल अर्पित करने तक इसका सेवन आरम्भ नहीं करते हैं। अधिकांश लोग इस दिन बेर फल का रसास्वादन करने हेतु उत्सुक रहते हैं। सरस्वती पूजा के अवसर पर टोपा कुल चटनी नामक एक विशेष व्यञ्जन के साथ खिचड़ी एवं लबरा का आनन्द लिया जाता है।

सरस्वती पूजा के अतिरिक्त, इस दिन हाते खोरी अनुष्ठान भी किया जाता है जिसके अन्तर्गत बच्चे बंगाली वर्ण-माला सीखना प्रारम्भ करते हैं, इस अनुष्ठान को अन्य राज्यों में विद्यारम्भ के रूप में जाना जाता है।

सन्ध्याकाल में देवी सरस्वती की मूर्ति को घर या पण्डालों से बाहर ले जाया जाता है तथा एक भव्य शोभायात्रा के साथ पवित्र जल स्रोतों में विसर्जित किया जाता है। सामान्यतः मूर्ति विसर्जन तीसरे दिन किया जाता है किन्तु अनेक लोग सरस्वती पूजा के दिन ही विसर्जन करते हैं।

पंजाब एवं हरियाणा - पंजाब एवं हरियाणा में वसन्त पञ्चमी का उच्चारण बसन्त पञ्चमी के रूप में किया जाता है। यहाँ बसन्त पञ्चमी के अनुष्ठान किसी पूजा-अर्चना से सम्बन्धित नहीं हैं। यद्यपि यह कारण इस अवसर को कम महत्वपूर्ण नहीं करता है क्योंकि वसन्त ऋतु के आगमन का स्वागत करने हेतु इस दिन विभिन्न आनन्दमयी एवं आकर्षक गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।

पतंग उड़ाने के लिये यह दिन अत्यधिक लोकप्रिय है। इस आयोजन में पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों की सहभागिता होती है। यह गतिविधि इतनी लोकप्रिय है कि बसन्त पञ्चमी से पूर्व पतंगों की माँग में अप्रत्याशित वृद्धि होती है तथा पर्व के समय पतंग निर्माता अत्यन्त व्यस्त रहते हैं। बसन्त पञ्चमी के दिन, स्पष्ट नीला आकाश विभिन्न प्रकार के रँगों, आकृतियों एवं आकारों वाली अनेक पतंगों से भरा होता है। यह उल्लेखनीय है कि गुजरात एवं आन्ध्र प्रदेश में, मकर संक्रान्ति के समय पतंग उड़ाना अधिक लोकप्रिय है।

इस अवसर पर स्कूल की छात्रायें गिद्दा नामक पारम्परिक पंजाबी परिधान पहनती हैं तथा पतंगबाजी की गतिविधियों में सहभागिता करती हैं। लोग वसन्त के आगमन का स्वागत करने हेतु पीले रँग के परिधानों को प्राथमिकता देते हैं, जिसे लोकप्रिय रूप से बसन्ती रँग के रूप में जाना जाता है। गिद्दा, पंजाब का एक लोक नृत्य है, जो बसन्त पञ्चमी की पूर्व सन्ध्या पर छात्राओं के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय होता है।

वसन्त पञ्चमी पर सार्वजनिक जीवन

वसन्त पञ्चमी भारत में अनिवार्य राजपत्रित अवकाश नहीं है। यद्यपि सामान्यतः हरियाणा, ओडिशा, त्रिपुरा तथा पश्चिम बंगाल में वसन्त पञ्चमी के दिन एक दिन का अवकाश मनाया जाता है।

देवी सरस्वती पूजा के अन्य दिवस

Kalash
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