श्री महालक्ष्मी सम्पत्ति, समृद्धि एवं सौभाग्य की देवी हैं। वह प्रेम एवं सुन्दरता का अवतार हैं। देवी महालक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं। देवी महालक्ष्मी का प्राकट्य क्षीर सागर से समुद्रमन्थन के समय हुआ था। देवी श्री लक्ष्मी ने स्वेच्छा से भगवान विष्णु को अपने वर के रूप में स्वीकार किया था। महालक्ष्मी को श्री के रूप में भी जाना जाता है।
विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, महालक्ष्मी महर्षि भृगु की सुपुत्री थीं, जो सप्तऋषियों में से एक थे। समुद्रमन्थन के समय महालक्ष्मी का पुनर्जन्म हुआ था। महालक्ष्मी ने स्वेच्छा से भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में स्वीकार किया तथा उनके साथ वैकुण्ठ में निवास करने लगीं। भगवान विष्णु के श्री राम एवं श्री कृष्ण अवतार के समय, देवी श्री लक्ष्मी ने देवी सीता एवं देवी राधा के रूप में अवतार धारण किया था।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी महालक्ष्मी के 18 पुत्र हैं, जिनके नाम देवसखा, चिक्लीत, आनन्द, कर्दम, श्रीप्रद, जातवेद, अनुराग, सम्वाद, विजय, वल्लभ, मद, हर्ष, बल, तेज, दमक, सलिल, गुग्गुल, कुरूण्टक आदि हैं।
श्री लक्ष्मी जी को चतुर्भुज रूप में कमल-पुष्प पर खड़ी अथवा विराजमान मुद्रा में चित्रित किया जाता है। वह अपने ऊपरी दो हाथों में कमल पुष्प धारण करती हैं। उनका अन्य एक हाथ वरद मुद्रा में होता है, जो भक्तों को सम्पत्ति एवं समृद्धि प्रदान करता है। अन्तिम हाथ अभय मुद्रा में होता है, जिसके द्वारा देवी माँ भक्तों को शक्ति तथा साहस प्रदान करती हैं।
देवी लक्ष्मी को लाल रँग के वस्त्र धारण किये हुये एवं स्वर्णाभूषणों से अलङ्कृत दर्शाया जाता है। देवी के मुखमण्डल पर शान्ति एवं सुख का भाव होता है। देवी को एक सुन्दर उपवन अथवा नीले सागर में विराजमान दर्शाया जाता है।
उनके समीप दो अथवा चार गजराज (हाथी) होते हैं, जो देवी का जलाभिषेक करते रहते हैं। श्वेत गज एवं उल्लू को देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है।
देवी महालक्ष्मी के उपरोक्त आठ स्वरूपों को संयुक्त रूप से अष्टलक्ष्मी के रूप में जाना जाता है। इन आठ स्वरूपों के अतिरिक्त, देवी लक्ष्मी को निन्मलिखित रूपों में भी पूजा जाता है।