घटस्थापना, नवरात्रि के महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। यह नौ दिनों के उत्सव के आरम्भ का प्रतीक है। हमारे शास्त्रों द्वारा नवरात्रि के आरम्भ में एक निश्चित समयावधि में घटस्थापना करने हेतु भलीभाँति परिभाषित नियम एवं दिशानिर्देश वर्णित किये गये हैं। घटस्थापना देवी शक्ति के आह्वान की प्रक्रिया है तथा हमारे शास्त्रों की चेतावनी के अनुसार, अशुभ काल में घटस्थापना करने से देवी शक्ति कुपित हो सकती हैं। अमावस्या तथा रात्रिकाल में घटस्थापना निषिद्ध होती है
प्रतिपदा तिथि के दिन का पहला एक तिहायी भाग घटस्थापना हेतु सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है। यदि किसी कारणवश यह समय उपलब्ध नहीं है, तो अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना की जा सकती है। घटस्थापना के समय, चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति योग को टालने की सलाह दी जाती है, परन्तु इन्हें वर्जित नहीं किया गया है। सर्वाधिक विचारणीय महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, घटस्थापना हिन्दु मध्याह्न से पूर्व प्रतिपदा के समय की जाती है।
अतः अपने नगर अथवा स्थान चयनित करने के पश्चात् नगर आधारित घटस्थापना मुहूर्त ज्ञात करें।
देवी-देवताओं के आवाहन से पूर्व कलश निर्माण किया जाता है।
प्रथम चरण - सर्वप्रथम मिट्टी के बड़े पात्र को लें, जिसका उपयोग कलश स्थापित करने हेतु किया जाना है। गमलें में मिट्टी की एक परत बिछायें, तत् पश्चात् अन्न के दानों (बीजों) को बिखेरें। पुनः मिट्टी की एक परत बिछायें तथा पात्र के किनारे-किनारे अन्न के दानों को रोपें। अब एक मिट्टी की तीसरी एवं अन्तिम परत बिछायें तथा मिट्टी को व्यवस्थित करने हेतु आवश्यकतानुसार जल दें।
द्वितीय चरण - अब कलश लें तथा उसके गले पर कलावा (मौली) बाँधने के पश्चात् उसे गले तक गंगाजल से भर लें। कलश के जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत तथा सिक्का डालें। कलश को ढँकने से पूर्व अशोक वृक्ष के पाँच पत्तों को कलश के मुख पर रखें तथा अन्त में उसे मिट्टी के छोटे पात्र से ढँक दें।
तृतीय चरण - अब बिना छिला हुआ जटा वाला नारियल लें तथा उसे लाल वस्त्र में लपेट कर मौली से बाँध दें।
नारियल को लाल वस्त्र एवं मौली से बाँधने के पश्चात् उसे उस कलश के मुख पर रख दें, जिसे द्वितीय चरण में तैयार किया गया था। अन्त में इस कलश को उस पात्र के मध्य में स्थापित करें, जिसमें प्रथम चरण में अन्न रोपित किया गया था। अब यह कलश देवी दुर्गा के आवाहन के लिये उपयुक्त है।
देवी दुर्गा का आवाहन करते हुये उनसे पूजन स्वीकार करने की प्रार्थना करें तथा देवी माँ से नौ दिवसीय इस अनुष्ठान के समय कलश में निवास करने का अनुरोध करें।
पंचोपचार पूजा के नामानुसार ही, यह पूजन पाँच प्रकार की पूजन सामग्रियों द्वारा किया जाता है। सर्वप्रथम कलश तथा आवाहन किये गये सभी देवी-देवताओं के निमित्त दीप प्रज्वलित करें। दीपदान के उपरान्त कलश को धुप, पुष्प तथा इत्र अर्पित करें। अन्त में नैवेद्य के रूप में कलश को फल एवं मिष्ठान अर्पित करते हुये पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें।