नवरात्रि उत्सव के समय नवदुर्गा की उपासना हेतु विभिन्न प्रकार के धार्मिक क्रिया-कलाप किये जाते हैं। इन क्रिया-कलापों के अन्तर्गत नवदुर्गा के प्रत्येक स्वरूप को एक विशिष्ट प्रसाद अर्पित करने का प्रचलन है। देवी दुर्गा का प्रत्येक अवतार अपने आप में विशेष एवं विलक्षण है। उनके विभिन्न स्वरूपों के अनुसार विशेष भोग-प्रसाद अर्पित किया जाता है।
नवरात्रि का प्रथम दिवस देवी शैलपुत्री को समर्पित है। देवी सती के रूप में आत्मदाह के पश्चात्, देवी पार्वती ने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। संस्कृत भाषा में शैल का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है। अतः पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण देवी माँ के इस स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है। माँ शैलपुत्री, त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की शक्ति का प्रतीक हैं। माता शैलपुत्री का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु देसी घी को प्रसाद स्वरूप अर्पित करें।
नवरात्रि का द्वितीय दिवस देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। देवी पार्वती के इस महान तपस्विनी एवं अविवाहित रूप को देवी ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है। देवी का यह अवतार दृढ़ता एवं तपस्या का प्रतीक है। साधक को देवी के इन गुणों की प्राप्ति हेतु शक्कर का प्रसाद अर्पित करना चाहिये।
नवरात्रि का तृतीय दिवस देवी चन्द्रघण्टा को समर्पित है। देवी चन्द्रघण्टा, देवी पार्वती का विवाहित स्वरूप हैं। भगवान शिव से विवाह करने के पश्चात्, देवी पार्वती ने अर्ध चन्द्र को अपने मस्तक पर सुशोभित करना आरम्भ कर दिया, जिसके कारण उन्हें देवी चन्द्रघण्टा के रूप में जाना जाता है। देवी चन्द्रघण्टा अपने भक्तों को साहस प्रदान कर, उन्हें समस्त अवगुणों से दूर रखती हैं। देवी चन्द्रघण्टा को प्रसाद स्वरुप खीर अर्पित करनी चाहिये।
नवरात्रि के चतुर्थ दिवस पर देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। माता कूष्माण्डा सूर्य के अन्दर अर्थात सूर्य मण्डल में निवास करती हैं, उनके अतिरिक्त अन्य किसी में यह शक्ति व क्षमता नहीं है। देवी कूष्माण्डा की देह सूर्य के समान दिव्य व तेजोमयी है। देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों के जीवन से अन्धकार का नाश करती हैं तथा उन्हें धन व स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। माता कूष्माण्डा को मालपुआ का प्रसाद अर्पित करें।
देवी स्कन्दमाता की पूजा नवरात्रि के पञ्चम दिवस पर की जाती है। देवी पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय हैं, जिन्हें स्कन्द देव के नाम से भी जाना जाता है। अतः भगवान स्कन्द के जन्म के पश्चात् माता पार्वती को देवी स्कन्दमाता रूप में जाना जाने लगा। देवी स्कन्दमाता अपने भक्तों को समृद्धि व शक्ति प्रदान करती हैं। नवरात्रि में देवी स्कन्दमाता को केले का प्रसाद अर्पित करें।
नवरात्रि के षष्ठम दिवस पर देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। महिषासुर दैत्य का अन्त करने हेतु, देवी पार्वती ने देवी कात्यायनी रूप धारण किया था। यह देवी पार्वती का सर्वाधिक हिंसक रूप है। देवी कात्यायनी का यह स्वरूप क्रोध के सकारात्मक उपयोग को प्रदर्शित करता है। देवी कात्यायनी को मधु अर्थात शहद का प्रसाद अर्पित करें।
नवरात्रि के सप्तम दिवस पर देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। देवी पार्वती ने शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों का वध करने हेतु अपने स्वर्ण वर्ण का त्याग कर दिया था। देवी के इस भयंकर स्वरूप को देवी कालरात्रि के रूप में जाना जाता है। यह देवी पार्वती का सर्वाधिक उग्र एवं क्रूर रूप है। देवी कालरात्रि की देह से उत्सर्जित होने वाली शक्तिशाली ऊर्जा को ग्रहण करने हेतु, नवरात्रि में देवी कालरात्रि को गुड़ का प्रसाद अर्पित करें।
नवरात्रि के अष्टम दिवस पर देवी महागौरी की पूजा की जाती है। हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री अत्यन्त सुन्दर थीं तथा उन्हें गौर वर्ण का वरदान प्राप्त था। अपने अत्यन्त गौर वर्ण के कारण, उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। देवी महागौरी को प्रसाद स्वरूप नारियल अर्पित करने से, मनुष्य पाप मुक्त होता है तथा विभिन्न प्रकार के भौतिक सुखः भोगता है।
नवरात्रि के नवम दिवस पर देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। शृष्टि के आरम्भ में भगवान रुद्र ने सृष्टि निर्माण हेतु आदि-पराशक्ति की पूजा की थी। यह माना जाता है कि देवी आदि-पराशक्ति का कोई रूप नहीं था तथा वह निराकार थीं। शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बायें आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। देवी सिद्धिदात्री की आराधना से समस्त प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में देवी सिद्धिदात्री को तिल या तिल से बने पदार्थों का प्रसाद अर्पित करें।